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चल घर चल, आवारा

चल अब घर चलें .
बहुत देर से  भटक रहा है  .. 
देहरी पर आके लौट जाता है ...
अपने घर जाने से डरता है क्या ?
कुछ अब भी बचा है क्या तेरा वहां ?
जब रहा नहीं कुछ तेरा , न जान्ने वाला कोई  न पहचानने वाले ,
न राह ताकने वाला कोई , न आवाज़ लगाने वाला ,
न देरी पर दान्ठने  वाला और न पहुँचने पर गले लगाने वाला , 
डरता  है !!!! कोई  कुबड़ी  बुधिया  लाट्ठी टेके आये और सारी यादें वापस ला दे ...
पूछले तेरा हाल चाल ...
नब्बू कैसा है रे , कहाँ था इतने दिन ,
शादी ब्याह किया या नहीं , 
या अभी भी आवारा घूम रहा है ? 
बस माँ अभी भी वैसा ही हूँ .
कुछ बदला नहीं ...

"हाँ जगह तो वही है ... सब वहीं तो  है , पर वैसा नहीं है .... " 




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