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याद है तुम्हें वो नैनीताल की ठंडी
झील के किनारे के वो पत्थर
जिन पर बैठ कर नैना देवी साफ़ दिखाई देती थी
लेकिन घंटियों की आवाज़ नहीं सुनाई आती थी
सर्दिओं के दिनों मैं भूटीया पड़ाव की पीछे की गली मैं छुप छुपा के सीग्रेटे पीना
दाज्यू से दर जो लगता था ,अब भी लगता है
अब तो बहुत वक़्त हो गया
क्या अब भी वहाँ वो लोग आते होंगे ?
जाने क्या करते होंगे
शायद बातें करते होंगे आपस मैं ,
कुछ मेरी कुछ तुम्हारी ,
कुछ खाली कप , और ठंडी चाय की .
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