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Samsara ...

क्या था जो तू लेके आया था ,
क्या है जो तू  लेके जाएगा ,
मिटटी से पैदा हुआ और मिटटी मैं मिल जाएगा ,
दिन रात तू  सूच मैं रहता है ,
ये करूँ कभी वो करूँ कुछ तो करूँ ....
पेट परिवार मेरा - तेरा अपना- पराया  इनिहीं सब उलझनों  मैं रहता है ..
और एक रात जब ये सफ़र ख़तम होने को होता है

तब भी तू सूच मैं रहता है ... क्या पाया मैंने और क्या खोया
तेरी गंदित   भी अजब है ..
शुन्य से शुरू हुआ , और तू दुखी है की शुन्य ही क्यूँ रहा ...

मुक्ति को मौत कहता है .. अजब है तेरी कहानी
दुःख का पीछा करता है अपनी आशाओं , तमन्नाओं का पीछा करता है ....

संसार  .... संसार .... संसार ....

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